स्माइल……….:)

कल ऒस्कर समारोह मे संगीतकार रहमान की “जय” के साथ ही पिन्की की “स्माइल” भी चर्चित रही. पिन्की को देख मुझे गुड्डी याद आ गयी.

बात कुछ १० साल पुरानी है. उन दिनो हम दूसरे शहर मे रहते थे. वहां गुड्डी हमारे घर आई थी. पिन्की की तरह ही गुड्डी का भी जन्म से ही होंठ कटाहुआ था. जिस तरह की समस्या गुड्डी को थी उसे ३ शल्यक्रिया के बाद आसानी से बिल्कुल ठीक किया जा सकता था. लेकिन जितनी कम उम्र मे ये शल्यक्रिया हो जाये उतना ही अच्छा होता है. किन्ही परिस्थितीयो‍ की वजह से उसकी शल्यक्रिया जल्दी नही कराई जा सकी. जब वो कुछ बडी हुई तब उसकी शल्यक्रिया हो पाई, लेकिन अब भी उसके तालू मे एक छेद रह गया था, जिसकी वजह से उसके उच्चारण साफ़ नही थे. इसके लिये एक और शल्यक्रिया होनी थी और अब तक गुड्डी १८/ १९ वर्ष की हो गयी थी.
हमारे शहर मे इस तरह की प्लास्टिक सर्जरी के लिये प्रसिद्ध एक चिकित्सक थे. जब गुड्डी को उन्हे दिखाया गया तो उन्होने कहा कि दो शल्यक्रिया के बाद गुड्डी पूरी तरह से ठीक हो सकेगी. पहली बार मे वे जीभ का कुछ टुकडा उसके तालू के छेद मे लगा देंगे और जीभ को तालू के साथ ही सिल दिया जायेगा ताकि वो हिस्सा जल्दी और पूरी तरह भर जाये. इसी तरह २०/२२ दिन रखने के बाद दूसरी बार मे जीभ को अलग कर दिया जायेगा. इस दौरान गुड्डी सिर्फ़ दूध और अन्य पेय ही ले सकती थी और उसे सर्दी या खांसी, छींक न हो इसका खास ध्यान रखना था.
पहली शल्यक्रिया जो कि मेजर थी और करीब ४ घन्टे चली, सफ़ल रही. कुछ दिन उसके माता- पिता साथ रहे फ़िर उन्हे अपने अपने काम के लिये वापिस जाना था. अब उसका छोटा भाई आया और हम लोग थे ही. मेरे घर से अस्पताल बहुत दूर था फ़िर भी मै और दीपक अपनी बेटियों के साथ, हर दिन शाम उनके लिये खाना लेकर गुड्डी से मिलने जाते. उन दिनों गुड्डी की जीभ सिली होने के कारण वो स्लेट पर लिख कर बतियाती. उसे कस कर पट्टी बांध दी गयी थी ताकि उसका मुंह ज्यादा खुले ही ना ! वो सिर्फ़ द्रव पदार्थ ही ले पाती थी, लेकिन उसने कभी भी किसी तरह की शिकायत नही की. दोनो भाई बहन आराम से रहे.. परिस्थितीयां सब कुछ सिखा देती है इन्सान को.. उसके लिये उम्र मे बडा होना जरूरी नही..
अस्पताल मे ज्यादातर मरीज जल जाने के बाद त्वचा को सुधारने वाले होते. ज्यातातर शल्यक्रिया ३-४ चरणों मे पूरी होती है. एक लडकी थी जिसकी दो उंगलियां किसी मशीन मे आने से बुरी तरह खराब हो गयी थी. उसके पोरो‍ को यथावत करने के लिये उसकी दोनो उंगलियों पर त्वचा लगाने के बाद पेट मे बाजू से छिद्र करके उसमे दोनो उंगलियो‍ को डाल कर सिल दिया गया था! ऐसा इसलिये किया गया था ताकि जीवित मांसपेशियों के रक्त प्रवाह के साथ जो नयी त्वचा लगायी गयी है वो पोशित हो और नयी जगह पर ठीक से स्थापित हो पाये.
अब गुड्डी की दूसरी, अपेक्षाक्रत छोटी शल्यक्रिया होनी थी.. गुड्डी और हममे इतना विश्वास हो गया था कि उसके माता पिता नही आये तो भी ये काम हो जायेगा…
दीपक को उस दिन कोई जरूरी काम था तो मुझे वहां होना था, शल्यक्रिया के वक्त. शल्यक्रिया के पहले दिन शाम को ही हम चिकित्सक से मिलने पहुंचे, उन्हे बताने कि मै रहूंगी शल्यक्रिया के वक्त तो उन्होने मुझे ऊपर से नीचे तक निहारा और शायद मेरी डील- डौल से मेरी उम्र का अन्दाजा लगाया! मुस्कुराये, शायद सोच रहे होंगे *ये क्या करेगी! कहीं घबराकर इसे ही न कुछ हो जाये!* :). दीपक ने तुरन्त कहा-शी केन मेनेज.:) . थोडा डर तो मेरे मन मे था क्यूं कि जब पहली बार वाली शल्यक्रिया के बाद गुड्डी को बाहर लाया गया था तो उसकी दोनो आंखें और होंठ बुरी तरह सूजे हुए थे… काफ़ी देर तक उसके मुंह से खून आता रहा था….. डॊक्टर साहब ने पूछा क्या गुड्डी आपकी छोटी बहन है? मैने कहा हां! ऐसा ही समझ लीजिये..(अस्पताल मे सब लोग यही मान रहे थे)..

दूसरी शल्यक्रिया भी सफ़ल रही और शारिरीक रूप मे उसकी समस्या अब बिल्कुल खत्म हो चुकी थी लेकिन उसके उच्चारण मे सुधार होना अभी बाकी था.. चिकित्सक ने बताया था कि इतनी उम्र तक गुड्डी जिस तरह से बोलती रही उस तरह से उसके मस्तिष्क मे वो अक्षर वैसे ही अन्कित हो चुके हैं और हर अक्षर के लिये जीभ और तालू का सही तालमेल होने मे समय लगेगा…..

गुड्डी अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद कुछ दिन हमारे साथ रहकर अपने घर चली गयी..
सुन्दर होने के साथ ही गुड्डी होशियार भी थी ही…. उसने स्नातकोत्तर तक पढाई की… उसकी उच्चारण समस्या पूरी तरह से ठीक तो नही हो पाई.. लेकिन अब उसकी शादी हो चुकी है और तारीफ़ की बात ये है कि उसके पति जो कि शारीरिक रूप से पूरी तरह सामान्य और रंग रूप मे भी अच्छे हैं, ने गुड्डी की उस बात को नजरअन्दाज करते हुए उसके अन्य गुणों को देखकर उससे शादी की! अब गुड्डी अपने परिवार के साथ खुश है!

Published in: on फ़रवरी 24, 2009 at 10:28 अपराह्न  Comments (15)  

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15 टिप्पणियां टिप्पणी करे

  1. बहुत सुन्दर पोस्ट! बहुत अच्छा लगा!
    परिस्थितीयां सब कुछ सिखा देती है इन्सान को.. उसके लिये उम्र मे बडा होना जरूरी नही..
    सुन्दर! सत्यवचन!

  2. मै कब से इसी का इन्तजार कर रही थी आखीर “गुड्डी” ने तुम्हारे चेहरे पर “स्माईल” ला ही दी।
    परिस्थितियाँ सब कुछ सीखा देती है,इन्सान तो क्या परिन्दे को भी———–

  3. Rachana ji aapki ye post parhkar khatm hone tak meri aankh bhar aayee bahut!!! Accha laga duniya mein Guddi ke pati jaise log bhi maujud hein 🙂

    Aur frankly speaking mujhe ye procedure itne detail mein nahi maloom the. Aap Guddi ke liye ye dekh chukin hein aur apna experience yahan likha bahut accha laga. I am still surprised ke Guddi ke parents nahi aaye …and you took care of everything…thats a very humble and big heart of yourself 🙂

    Khush rahein sada
    Cheers

  4. बड़ी मार्मिक पोस्ट !!!!!!!!!

  5. आपके और गुड्डी के धीरज और जज्बे को सलाम

  6. तारीफ़ की बात ये है कि उसके पति जो कि शारीरिक रूप से पूरी तरह सामान्य और रंग रूप मे भी अच्छे हैं, ने गुड्डी की उस बात को नजरअन्दाज करते हुए उसके अन्य गुणों को देखकर उससे शादी की! अब गुड्डी अपने परिवार के साथ खुश है!
    पूरे आलेख में मुझे सबसे अच्‍छी बात यह लगी……मेरी एक पोलियोग्रस्‍त छोटी बहन अपने एक पैर के तकलीफ के बावजूद बहुत ही सुखमय दाम्‍पत्‍य जीवन व्‍यतीत कर रही है…..आगे जीवन में तरक्‍की करने के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं उनको।

  7. अपनी कठिनाइयों से जूझती गुड्डी की ये कथा काफी प्रेरक लगी। धन्यवाद इस प्रस्तुति का !

  8. ॒ अनूप जी, धन्यवाद!

    ॒ अर्चना जी, 🙂 🙂 उस समय मै , निशी, पूर्वी, गुड्डी और अभय अच्छे दोस्त हो गये थे. 🙂

    ॒ डॊन, दुनिया मे जितने बुरे लोग हैं उससे कई गुना ज्यादा अच्छे लोगों से अटी पडी है दुनिया! 🙂
    जैसे मैने कहा ही कि गुड्डी उम्र से बह्त छोटी नही थी.. और उसके भाई और उसका व्यवहार बहुत ही परिवक्व और शांत था… जिस स्थिती मे गुड्डी २० दिन रही वो बहुत ही कठिन था, लेकिन उसने कमाल की सहनशीलता दिखाई… मै या और किसी के साथ भी वो ये काम करा लेती….
    रही बात उसके पेरेन्ट्स के नही आने की.. तो किसी के हमारे विश्वास के बदले हमे भी विश्वास देना ही चाहिये ना! 🙂

    और इन तमाम बातो‍ की जानकारी मुझे भी नही थी, लेकिन बहुत सवाल पूछ्ने की आदत है मेरी, और नई बातें जानना मेरा शौक! 🙂

    ॒ सतीश , मुझे भी गुडडी से धैर्य सीखने को मिला… टिप्पणी के लिये धन्यवाद!

  9. ॒ संगीता जी, उसी एक सबसे अच्छी बात के लिये ये पोस्ट मैने लिखी.. ताकि लोगो को जानने को मिले..

    आपकी बहन के बारे मे जानकर खुशी हुई..

  10. guddi ke jaise hi apki lekhani bhi sunder hai.jay ho

  11. हाँ अच्छे लोगो को दोस्त बनते और बनाते देर नही लगती।

  12. गुड्डी के बारॆ में जानना अच्छा लगा।
    एक संस्था है दी स्माइल ट्रेन जो इस तरह के बच्चों का मुफ्त में इलाज करवाती है अब तक हजारों बच्चों को उनकी मुस्कान लौटा चुकी है।

  13. http://www.smiletrain.org/site/PageServer

  14. ॒ मनीष जी, शुक्रिया.. आपकी कमेंट जाने कैसे स्पैम मे थी .:)

    ॒ प्रीती जी, आपको यहां देखकर खुशी हुई . 🙂

    ॒ सागर जी, धन्यवाद. हां इस संस्था के बारे सुना…

  15. […] होते हैं. इस बात का जिक्र मैने “ गुड्डी” की बारे मे लिखी पोस्ट मे भी किया […]


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